काश सोनिया गांधी एक राजनेता होतीं

   तो क्या चक्रव्यूह में फंस गई हैं सोनिया गांधी? आप अगर इस देश के किसी व्यक्ति से जिसे राजनीति में थोड़ी बहुत रुचि है,पूछेंगे की सोनिया गांधी कौन हैं तो ज़्यादातर लोग यही कहेंगे कि वो राहुल और प्रियंका गांधी की माँ है, इदिरा गांधी की बहू हैं , राजीव गांधी की पत्नी हैं। कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि वो #रोबर्ट वाड्रा की सास है, यूपीए की चेयरपर्सन हैं। #कांग्रेस के लोग इससे आगे बढ़कर उन्हें त्याग तपस्या की मूर्ति , भारत माँ इत्यादि अलंकारों से भी संबोधित कर सकते हैं। मगर कोई ये नही कहेगा कि वो एक राजनेता हैं। क्योंकि इस देश के जन मानस उन्हें राजनेता मानता ही नहीं क्योंकि वो राजनेता हैं ही नहीं। और यही से कांग्रेस की समस्या शुरू होती है। वही कांग्रेस जिसे इस देश का बच्चा जानता है कि इसने देश पर करीब 50 साल राज किया और वो विपक्ष में हैं क्योंकि घोटाले हुए ।


   आतंकवादी हमले हुए इत्यादि। और यही कांग्रेस को दूसरी बड़ी समस्या है कि यह सत्ताधारो मानसिकता की पार्टी है। इसे विपक्ष में रहना आता ही नहीं। कितनी भी कोशिश करे उसका सत्ता वाली चरित्र उजागर हो ही जातो है। और नहीँ तो कर दी जाती है। कांग्रेस अगर विपक्ष में रहती तो शायद उसे यह समझ मे आता कि विपक्ष जनता के करीब रहता है उसकी आवाज़ बनता है और मीडिया ही उसका सबसे बड़ा हथियार है l


    इस बात को 50 साल तक विपक्ष की राजनिति करने वाला आज का सत्ताधारो दल और उसके नेता बखूबी जानते हैं। आइये जानते हैं कि अर्णब सोनिया गांधी लड़ाई से कांग्रेस की मुसीबत कैसे बढ़ेगी।
1। सोनिया राहुल के सवाल पर मोदी की खामोशी को मिलेगा जनसमर्थन : #पालघर में #अर्णब के सवाल पर खामोश रहकर सोनिया गांधी ने सरकार से सवाल पूछने का अपना नैतिक अधिकार खो दीया। राहुल गांधी के बाद सोनिया मोदी को घेर रही थी। कॅरोना पे सवाल के तीर दागे जा रहे थे। खुद खामोश रहकर सोनिया गांधी ने सरकार को यह बता दिया की हर सवाल का उत्तर देना जरूरी नहीं। और ज्यादा चिल्लाने वाले के साथ कैसे पेश आना चाहिए।
2। कौन है#आनतानियोमेनियो? अर्णब के सवाल पूछते ही देश के गूगल पर खोज शुरू हुआ और #अनतानियोमेनियो के बारे में जितने विषय वस्तु थे सब निकाल लिए गए।  जन धारणा के विपरीत बड़े नेता जैसे #मारग्रेटआल्वा, नटवर सिंह, प्रणब मुखर्जी  #संजय बंगरु और सुब्रह्मण्यम स्वामी द्वारा लिखे गए कई विषय वस्तु हैं जो सोनिया गांधी के रहस्य को और रहस्मयी बनाती है। आज हर व्यक्ति अपने अपने सुविधा अनुसार उनकी वयाखया कर रहा है। आज की सोशल मीडिया पीढ़ी युवा के मन मे कई सवाल उठ रहे हैं जैसे कि क्या वाकई पाकिस्तानी जासूस थी सोनिया। क्या वो KGB की एजेंट हैं? क्या उनकी राजीव गांधी से शादी रूसी जासूसों की चाल थी जिससे देश के प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी पर निगरानी रखी जाए। क्या राजीव गान्धी के मौत और फिर बड़े कांग्रेस नेताओं की मौत के पीछे वाकई सोनिया गांधी का ही हाथ है? क्या सोनिया हिन्दू विरोधी हैं? तो 2004 में शंकराचार्य की गिरफ्तारी क्या उनके जिद पर हुए थी। और क्या वकाई पालघर में साधुओं की हत्या में लिप्त चर्चो की रक्षक और संरक्षक है सोनिया गांधी? अर्णब गोस्वामी के मुंह बंद करने के प्रयास से जनता को अब इन  सवालों पर भरोसा होने लगा है। कल को यही सवाल विकराल हो जयेंगे की क्या एक जासूस को इस देश की राजनिति में बने रहना चहिये? 
3। अदलात में कई मामले अब अपने अन्तिम
 चरण में हैं। सोनिया गांधी राहुल गांधी, प्रियंका और रोबर्ट वाड्रा के ऊपरअदालत में कई मामले की सुनवाई अंतिम चरण में हैं। दिल्ली दंगे भड़काने के पीछे उनकी भाषण को सरकार ने बड़ी वजह बनाया है।  कई मामले में वो बेल पर हैं। कल को अगर अदलात के फैसले इनके खिलाफ आती है तो सरकार इनसे उसी भाषा मे आसानी से बात कर सकेगी जिस भाषा मे वो अपबे विरोधी से बात करते हैं। तो ऐसे में जनता इनके समर्थन में रोड पर अब नहीं आएगी।
4। कांग्रेस के समर्थन वाली जनता गांव में, आदिवासी इलाके में हैं। दिल्ली, मुम्बई जैसे महानगरों में उसके कार्यकर्त्ता ही हैं। जो सभाओं के लिए भाड़े के भीड़ जुटा अपनी लाज बचते हैं। सवाल से कन्नी काट कर कांग्रेस ने महानगरों और नगरों के यूवा, शिक्षित सोशल मीडिया वाली जनता के मन मे भ्रम पैदा कर दिया है। वो तो इसे न्याय प्रणाली की अंतिम प्रक्रिया ही मानेगा। इसी जनता के दम पर अरविंद केजरीवाल ने 2012 में कांग्रेस की कब्र खोदनी शुरू की। और पार्टी बेबस थी। 
काश सोनिया गांधी एक राजनेता होतीं । काश वो विपक्ष की जमीनी राजनीति की होंति तो उन्हें समझ मे आता कि कितनी आसानी से वो सरकार के जाल में खुद ही फंस गई।


   अब कल कोई बुद्धिजीवी , पत्रकार, वकील, सरकार के विरोध में खड़ा हो तो उसकी आवाज़ को बड़ी आसानी से कुचला जाएगा क्योंकि इस देश के जनमानस में अब एक मौन स्वीकृति और समर्थन  रहेगा। अर्णब पर 200 FIR कर के कांग्रेस ने ही एक नरेटिव सेट कर दिया है जिसकी काट बहुत मुश्किल है।  तो क्या वाकई मोदी के चक्रव्यूह में फंस गई है सोनिया? क्या सोचते हैं आप? आपके कमेंट का हमे इन्तेजार है।