तो उमर अब्दुल्ला को चाहिए कश्मीर का राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री। जिस बात का डर था वो ही हुआ। कांग्रेस अपनी स्थिति स्पष्ट करें।

तो उमर अब्दुल्ला को चाहिए कश्मीर का राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री।
जिस बात का डर था वो ही हुआ। कांग्रेस अपनी स्थिति स्पष्ट करें।



2 अप्रैल को सामचार पत्रों में जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला का एक बयान छपा है। उमर का कहना है कि अब कश्मीर में राष्ट्रपति (सदर-ए-रियासत) तथा प्रधानमंत्री (वजीर-ए-आजम) के पद पर बहाल किए जाएंगे। स्वाभाविक है कि उमर ऐसा तभी कर सकते हैं, जब लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को सरकार बनाने वाला बहुमत मिले। चूंकि उमर अब्दुल्ला की नेशनल कान्फ्रेंस का चुनाव में कांग्रेस के साथ गठजोड़ है, इसलिए कांग्रेस भी चाहेगी कि जम्मू-कश्मीर में नेशनल काॅन्फ्रेंस की जीत हो।


 


   अब यह कांग्रेस को स्पष्ट करना है कि वह कश्मीर में अलग राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री चाहती है या नहीं। उमर अब्दुल्ला के पिता फारुख अब्दुल्ला तो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद पर समर्थन भी दे चुके हैं।


    जहां तक उमर के ताजा बयान का सवाल है तो जिस बात का डर था वो ही हुआ। अब साफ समझा जा सकता है कि पहले कश्मीर में अनुच्छेद 370 का प्रावधान क्यों किया तथा फिर चार लाख हिन्दुओं को कश्मीर से क्यों भगाया गया। आजादी के बाद अधिकतर समय अब्दुल्ला परिवार के सदस्य ही मुख्यमंत्री रहे हैं। शेख अब्दुल्ला ने अपने जीते जी बेटे फारुख को तैयार किया तो फारुख ने भी अपने बेटे उमर को सीएम बनवा दिया।


 


   1947 के समय में शेख अब्दुल्ला की भूमिका रही तो अब कश्मीर को भारत से अलग करने में पोते उमर की भूमिका सामने आ रही है। जो लोग इस देश में धर्म निरपेक्षता की दुहाई देते हैं वे यह सच्चाई समझ लें कि यदि कश्मीर में हिन्दू भी बसे रहते तो वजीर-ए-आजम वाला बयान देने की हिम्मत उमर की नहीं होती। अब कश्मीर में सिर्फ मुस्लिम आबादी रह गई, तब उमर को वजीर-ए-आजम बनने की चिंता है। आखिर उमर अब्दुल्ला कश्मीर में अलग से राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री क्यों चाहते हैं?


 


   क्या यह देशद्रोह वाला बयान नहीं हैं? इसे देश की राजनीति का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि जो नेता देश को तोड़ना चाहते हैं उन्हीं की सुरक्षा पर करोड़ों रुपए खर्च हो रहा है। गंभीर बात तो यह है कि उमर अब्दुल्ला जैसा नेता जब जब देश को तोड़ने वाले बयान देता है, तब तब चुनाव में उसके दल को फायदा होता है। क्या इस देश में ऐसे मतदाता रहते हैं जो कश्मीर को भारत से अलग देखना चाहते हैं? राजनेता सिर्फ सत्ता हथियाने के लिए देश को तोड़ने का कृत्य न करें।