आवश्यकता की पूर्ति हो सकती है इच्छाओं की नहीं।

आवश्यकता और इच्छाएं


आवश्यकता की पूर्ति हो सकती है इच्छाओं की नहीं।


#दुख_का_कारण_भी_इच्छाएं_ही_हैं।


धन कमाना बुरा नहीं है। पैसा खूब कमाना चाहिए। खूब परिश्रम से पैसा कमायें लेकिन यह पता जरूर होना चाहिए कि इस पैसे का हमें करना क्या है? केवल कमाना और गड्डियां जोड़कर रख देना क्या यही उद्देश्य है पैसा कमाने का। धन लक्ष्मी होती है और लक्ष्मी का कभी निरादर नहीं करना चाहिए। इसलिए खूब मेहनत कीजिए और खूब धन कमायें। लेकिन किस लिए इसका ज्ञान भी होना जरूरी है।


जीवन की आवश्यकताओं को सुखपूर्वक पूरा करने के लिए धन जरूरी है। यहाँ यह समझना जरूरी है कि जीवन में दो चीजें होती हैं। एक होती है जीवन की आवश्यकता और एक होती है जीवन की इच्छा। आवश्यकताएं जायज होती है और वो हमें सुख देती है जबकि इच्छाएं नाजायज होती है जो हमें दुःख देती है। आवश्यकताएं शरीर की होती है जैसे रोटी, कपड़ा और मकान जबकि इच्छाएं मन की होती है। आवश्यकता पूरी हो जाने पर शरीर प्रसन्न होता है जबकि इच्छा पूरी होने पर मन और ज्यादा पागल हो जाता है।


शरीर की आवश्यकता है भूख। रोटी, सब्जी, दाल मिल गई तो शरीर प्रसन्न हो गया लेकिन मन की इच्छा कहती हैं फाईव स्टार में खाना खाना चाहिए। ये आपको पागल कर देता है। शरीर की आवश्यकता है मौसम के अनुसार कपड़े मिलने चाहिए लेकिन मन की इच्छा कहती हैं ब्रांडेड कपड़े होने चाहिए। ये मन की इच्छा आदमी को पागल करती है। परिवार की आवश्यकता है अच्छा मकान चाहिए। मकान बन गया, परिवार प्रसन्न हो गया लेकिन मन की इच्छा कहती हैं सबसे बड़ी हवेली मेरी होनी चाहिए।


आज हम आवश्यकताएं घटाते जा रहे हैं और इच्छाएं बढ़ाते जा रहे हैं। यही दुःख का सबसे बड़ा कारण है इसलिए आवश्यकताएं बढाइये और इच्छाएं घटाते जाएं तभी जीवन सफल होगा और शांति मिलेगी। आज हमारे रसोईघर की चीजें घट रही है और बाथरूम की चीजें बढ़ रही है। रसोईघर से दूध, घी, मक्खन और मीठा इत्यादि घट रहा है। आज हमारे घर में कोई दूध नहीं पीता, घी व मक्खन नहीं खाता। मीठी चाय नहीं पीता। रसोईघर में रखी सुखी रोटी, बिना नमक व उबली हुई सब्जी खा रहे हैं तो दूसरी तरफ बाथरूम में अलग अलग तरह के साबुन, तेल, क्रीम, शैम्पू रखे मिलेंगे जैसे बाथरूम कम और किसी बिसायती की दुकान ज्यादा लगता है।


आदमी की कमाई का तीन चौथाई हिस्सा तो इस मन की इच्छा पूरी करने में ही खर्च हो जाता है जबकि परिवार के संचालन के लिए रसोईघर में एक चौथाई भी खर्च नहीं करते हैं। आज आदमी की कमाई का एक चौथाई हिस्सा शरीर पर खर्च होता है जबकि तीन चौथाई हिस्सा शरीर को सजाने के लिए खर्च हो रहा है। इसलिए अपनी आवश्यकताओं को बढाओ और इच्छाओं को घटाओ। यही वो मूल मंत्र है जो आदमी को सुखी रख सकता है। आदमी परिवार की इच्छाओं को पूरा करते करते बुढ़ा हो रहा है जबकि घर की महिलाओं के चेहरे की चमक दिनोंदिन बढ़ रही है।


सारांश -


अपनी आवश्यकताओं को बढ़ाओ और अपने मन की  इच्छाओं को_ टाओ।