राहुल के नौ झूठ जो टिक नहीं पाए
   राहुल बार-बार झूठ बोलते रंगे हाथों पकडे जाते हैं| कितने सवाल हैं जो राहुल गाँधी से पूछे जाने हैं| नेशनल हैराल्ड मामले में राहुल और उनकी माता जमानत पर हैं| औगस्ता वेस्टलैंड हैलीकॉप्टर घोटाले में उनका नाम आ रहा है| 2जी घोटाले की आरोपी कंपनी से उनकी सांठगांठ के दस्तावेज सामने आए हैं, जिन पर बकायदा राहुल गाँधी के हस्ताक्षर हैं| इन कागजों से पता चलता है कि 2 जी घोटाले में शामिल कंपनी यूनिटेक से राहुल गाँधी को हर महीने लाखों रुपये मिल रहे थे| पर राहुल बेलौस घूम रहे हैं| गैरजिम्मेदाराना झूठ बोल रहे हैं| वो प्रधानमन्त्री से सवाल पूछ रहे हैं| वो कांग्रेस के प्रधानमंत्री प्रत्याशी हैं| क्या मजाक बना रखा है.......

 

   क्या राहुल गांधी आदतन झूठ बोलते हैं. वो सार्वजनिक मंचों से और मीडिया के सामने बेफिक्री से झूठ बोलते हैं. वो संसद में झूठ बोलते पकड़े जाते हैं. झूठों की इस श्रंखला में वो सर्वोच्च न्यायालय को भी घसीट लाते हैं और जब न्यायालय के कोड़े का भय आ खडा होता है, तो माफ़ी मांग लेते हैं. अदालत से बाहर आकर फिर शुरू हो जाते हैं. बेधड़क, बेपरवाह. क्योंकि उन्हें संभालने के लिए पीछे उनका खानदान खड़ा है, जो उनकी पार्टी पर राज करता है. राहुल गांधी का झूठ बोलना गंभीर विषय है. दुनिया के अन्य देशों में इस तरह झूठ बोलते पकड़े जाना बहुत गंभीरता से लिया जाता है.

झूठ नंबर एक

क्या ये छोटी बात है कि राहुल गांधी ने अपना झूठ देश के सर्वोच्च न्यायालय पर थोप दिया. अदालत के मुंह में अपने शब्द डाल दिए. राहुल गांधी के शब्द थे “आज सुप्रीमकोर्ट ने भी मान लिया है कि देश का चौकीदार चोर है.” भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी द्वारा इस बयान को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दी गई अवमानना याचिका दायर करने के बाद राहुल ने इस बयान पर माफ़ी मांगी और फिर उसी तरह की बयानबाजी में व्यस्त हो गए.

झूठ नंबर दो

क्या ये छोटी बात है कि राहुल गांधी ने लोकतंत्र के सर्वोच्च सदन में फ़्रांस सरकार और फ्रांस के राष्ट्रपति को लेकर झूठा बयान दिया ? राहुल गांधी ने संसद में कहा था कि उनकी फ़्रांस के वर्तमान राष्ट्रपति से मुलाकात हुई जिसमें उन्होंने राहुल को बतलाया कि फ़्रांस सरकार ने रफाल की कीमत की गोपनीयता की कोई शर्त नहीं रखी है. राहुल के इस बयान पर फ्रांस सरकार का तत्काल जवाब आया कि फ्रांस के राष्ट्रपति की राहुल गांधी से ऐसी कोई बात नहीं हुई है, और सौदे में गोपनीयता की शर्त है. बाद में रफाल सौदे के कागज़ात की जाँच करने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने भी कहा कि रफाल सौदे में गोपनीयता की शर्त है. राहुल सदन में झूठ बोलते पकड़े गए थे. एक मित्र देश की सरकार ने उनके झूठ का पर्दाफ़ाश किया था, लेकिन राहुल के चेहरे पर कोई शर्मिंदगी नहीं थी.

झूठ नंबर तीन

रफाल सौदे को लेकर राहुल ने बार-बार बयान दिया कि प्रधानमन्त्री मोदी ने बिना किसी से पूछे रफाल सौदा तय कर दिया. प्रक्रिया का पालन नहीं किया. राहुल गाँधी बोले कि पीएम अचानक फ़्रांस चले गए और रक्षामंत्री को बिना बताए राफेल डील पर हस्ताक्षर कर दिए. सच ये है कि मोदी सरकार की रफाल सौदे की बात 2015 से चल रही थी, जिसमें रक्षा मंत्रालय और वायुसेना की अनेक समितियां शामिल थीं. 2016 में मोदी फ़्रांस गए तब इस सौदे पर दस्तखत हुए. इस पर सर्वोच्च ने स्वयं मोहर लगाई है कि रफाल सौदे में पूरी प्रक्रिया का पालन हुआ है, और सौदा तय होने के पहले विभिन्न स्तरों पर 74 बैठकें हुई थीं. वैसे भी ये इतनी बचकानी बात है कि इतना बड़ा रक्षा सौदा बिना बातचीत के तय हो सकता है. पर राहुल तो राहुल हैं.

झूठ नंबर चार

राहुल गांधी ने कहा कि रक्षा मंत्रालय के तत्कालीन संयुक्त सचिव, राजीव वर्मा ने राफेल सौदे पर आपत्ति उठाई थी, और सौदे के विरोध में वो छुट्टी पर चले गए. दरअसल राजीव वर्मा ने ही राफेल सौदे को तय करने वाला कैबिनेट नोट लिखा था. राहुल के बोलने के बाद राजीव वर्मा ने मीडिया में आकर राहुल के इस आरोप का खंडन किया. उन्होंने बताया कि वो काफी पहले से तय, एक छोटी अवधि का कोर्स करने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय गए थे, जिसका प्रमाण सरकारी फाइल में मौजूद है. कार्यालय के दस्तावेज के अनुसार वर्मा ने जुलाई 2016 में ही आवेदन लगा दिया था कि उन्हें आगामी सितंबर में इस अध्ययन अवकाश पर जाना है.

झूठ नंबर पांच और छह

राहुल ने बार बार बयान दिया कि “हमारी डील मोदी सरकार की डील से सस्ती थी.” सच ये है कि यूपीए सरकार ने कोई 'डील' की ही नहीं थी. पर राहुल तो उनकी इस काल्पनिक 'डील' की कीमत भी बतलाते घूमते रहे. वो काल्पनिक कीमत हर शहर, हर सभा, हर प्रेस कॉन्फ्रेंस के साथ बदलती रही. बाद में ये भी सामने आया कि यूपीए सरकार ने यदि ये 'डील' कर भी ली होती तो वो इसे मोदी सरकार की तुलना में महंगा ही खरीदने वाले थे.

इतना ही नहीं, राहुल गाँधी की माता के कठोर नियंत्रण में चलने वाली यूपीए सरकार ने रफाल की खरीद को बार-बार लटकाया. और अंत में जब साल 2012 में फाइल मंजूरी के लिए तत्कालीन रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी की मेज पर आई, तब वायुसेना और अन्य समितियों की सारी मंजूरियाँ मिल चुकी थीं, लेकिन मामले को फिर टांग दिया गया| एंटनी ने रफाल की फाइल पर अपनी टिपण्णी लिखी कि रफाल खरीदी को तो मंजूरी दी जाती है लेकिन रफाल मंजूरी की प्रक्रिया को रद्द किया जाता है. अर्थ ये हुआ कि ' हमें सामान तो पसंद आया पर सामान को पसंद करने की प्रक्रिया को हम रद्द करते हैं.' और इस प्रकार खरीद को फिर ताल दिया गया. ये खुलासा खतरनाक है कि जब एक तरफ देश की सुरक्षा की स्थिति गंभीर से गंभीर होती जा रही थी, तब इतनी आवश्यक खरीद को दस सालों तक अटकाया और भटकाया गया, और अंत में बिना कोई सौदा किए यूपीए सरकार सत्ता से बाहर हो गई. पर राहुल कहे जा रहे हैं कि “हमने आपसे अच्छा सौदा किया था.” दूसरी तरफ अगस्ता वेस्टलैंड हैलीकॉप्टर घोटाले के आरोपी मिशेल के गांधी परिवार से संबंध और उसके द्वारा रफाल की प्रतिद्वंदी दूसरी विमान कंपनी के लिए की गई लॉबिंग एक बार फिर गांधी परिवार की ओर शक की सुई को घुमा रही है.

राहुल चिल्ला-चिल्लाकर झूठ बोल रहे हैं कि “हम 126 विमान खरीदने वाले थे. मोदी जी ने सिर्फ 36 खरीदे हैं. “ सच ये है कि यूपीए सरकार ने बातचीत सिर्फ 18 विमानों की खरीद को लेकर की थी. वो भी, सिर्फ बात.

झूठ नंबर सात, आठ और नौ

राहुल झूठ बोल रहे हैं, कि रिलायंस कंपनी को रफाल विमान बनाने का ठेका मिला है. वास्तव में रिलायंस को सिर्फ कुछ माल आपूर्ति का काम मिला है. रिलायंस के अलावा टाटा, गोदरेज, विप्रो, महिंद्रा, सेमटेल, एचसीएल, एलएंडटी, टीसीएस सहित सौ अन्य भारतीय कंपनियों को भी रिलायंस की तरह ही माल आपूर्ति का ठेका मिला है. इस ही ऑफशोर पार्टनर कहते हैं. इस माल आपूर्ति में रिलायंस का हिस्सा मात्र 3 प्रतिशत है| शेष 97 प्रतिशत अन्य कंपनियों को मिला है. यानी रिलायंस के मामले में राहुल ने दो झूठ बोले हैं, पहला माल आपूर्ति के सामान्य ठेके को विमान निर्माण का ठेका बतलाया और दूसरा इसी तरह का ठेका पाने वाली टाटा , गोदरेज, विप्रो जैसी बड़ी-बड़ी कंपनियों व अन्य (सौ)कंपनियों का नाम छिपाया. और फिर उसे प्रधानमन्त्री मोदी का घोटाला बतला दिया.

हिंदुस्तान एयरोनॉटिकल लिमिटेड या एच.ए.एल. (हाल) को लेकर राहुल गांधी ने संसद, सभाओं और हाल के कर्मचारियों के बीच जाकर झूठ बोला कि “हमने हाल को रफाल विमान बनाने का ठेका दिलाने का सौदा किया था, मोदी जी ने उसे हाल से छीनकर अंबानी को दे दिया.” दस्तावेज बतलाते हैं, कि रफाल सौदे की बातचीत से हाल यूपीए सरकार के दौरान ही यानी साल 2012-13 में ही बाहर कर दी गई थी| पाँचवी पीढ़ी के विमान बनाने की हाल की संदिग्ध क्षमता और हाल द्वारा माँगी जा रही ढाई गुना कीमत के कारण ऐसा हुआ था.

झूठों की लंबी दास्तान

राहुल गांधी का सारा राजनैतिक गणित और सारा राजनैतिक प्रशिक्षण ही इस तरह का हुआ है. जब मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल में राहुल गाँधी को भावी प्रधानमन्त्री के रूप में पेश करने के लिए उनकी एक ख़ास तरह की छवि गढ़ी जा रही थी वो 'किसान आंदोलन' करने उत्तरप्रदेश के भट्टापारसौल पहुंचे. देशभर के मीडिया कैमरों के सामने राहुल एक गड्ढे के किनारे बैठ गए और बोले कि “यहां दर्जनों लाशें गड़ी हुई हैं.” क्रेन आई, खुदाई शुरू हुई. लाशें तो छोडिए, हड्डी का टुकड़ा भी नहीं निकला. फिर राहुल ने कहा कि पुलिस ने कई महिलाओं के साथ बलात्कार किया है. मीडिया ढूंढता रहा. इलाके में कोई ऐसी महिला नहीं मिली. जिन महिलाओं को बलात्कार का शिकार बताया गया वो खुद ही राहुल के दावों पर आश्चर्यचकित थीं.

राहुल की विदेश यात्राएं गुप्त होती हैं. राहुल कुछ समय पहले कथित रूप से कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर गए. जब एक सार्वजनिक कार्यक्रम में एक कांग्रेस कार्यकर्ता ने उनसे कैलाश मानसरोवर यात्रा के अनुभव साझा करने को कहा तो राहुल गांधी के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगीं. कुछ देर मौन रहने के बाद उन्होंने कांग्रेस कार्यकर्ताओं का ज्ञानवर्धन किया कि कैलाश मानसरोवर में एक पर्वत है और एक झील है.

जवाबदेही तय हो....

अमेठी से चर्चा उठी है कि राहुल ने अपने नाम को लेकर ही झूठ बोला है| एक कागज़ में उनका नाम नाम राउल विंसी है तो दूसरे में राहुल गाँधी| एक व्यक्ति दो नाम कब रखता है ? शरीफ आदमी तो नहीं रखता| दो नाम वही रखता है जिसे कोई जालसाजी करनी हो| अमेठी के निर्दलीय प्रत्याशी ध्रुवलाल ने शिकायत की है कि दस्तावेजों के अनुसार राहुल ने ब्रिटिश नागरिकता ली थी और भारत में दोहरी नागरिकता रखना गैरकानूनी है| राहुल गाँधी को इन सवालों के जवाब देने ही होंगे| आश्चर्य तो मीडिया के उस बड़े वर्ग पर भी है, जो इतने गंभीर आरोपों पर मौन बना रहता है|