भारतीय समाज में आंतरिक एकात्मकता है’’
गत दिनों पंजाब विश्वविद्यालय में पंचनद शोध संस्थान की ओर से एक व्याख्यान कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख अनिरुद्ध देशपांडे। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि भारतीय सामाजिक चिंतन में अनेक विचार हैं, यही विशेषता यहां के चिंतन अधिष्ठान का सौंदर्य है।

    इस विचार विविधता में कहीं भी विरोधाभास नहीं, अपितु आंतरिक सामंजस्यता है।

हिमालय से लेकर समुद्र तक भारत की एक राष्ट्रीयता का कारण सिर्फ इसका भूभाग नहीं, अपितु इसकी सांस्कृतिक समानता है। यहां रहने वाला हर नागरिक आपस में एक-दूसरे से जुड़ा है। हमारी परंपरा टुकड़ों में विचार करने की नहीं है, बल्कि हम समग्रता से सोचते हैं। यहां एकता से आगे बढ़कर एकात्मकता का विचार किया जाता है। भारत में समाज को संस्कृतिनिष्ठ और व्यक्ति को ब्रह्मनिष्ठ बनाया गया है।

     यहां राष्ट्र की संकल्पना को साकार करने के लिए महापुरुषों ने अनेक प्रकार से प्रयास किए। उन्होंने कहा कि लोकमान्य तिलक ने लोगों को स्वाधीनता आंदोलन से जोड़ने के लिए गणेश महोत्सव की परंपरा शुरू की। स्वाधीनता आंदोलन में इन महोत्सवों की महती भूमिका रही। आज यह परंपरा लोक जीवन के व्यवहार का अंग बन चुकी है। उन्होंने कहा कि इतिहास बताता है कि भारतीय विचार परंपरा ने अनेक झंझावातों को झेला। 1760 में उद्योगीकरण के कारण पूंजीवाद की शुरुआत हुई। इस दौर में उभरी नई संकल्पनाओं में व्यक्ति को मात्र एक आर्थिक इकाई मान लिया गया। यहीं से सामाजिक विकृतियों की शुरुआत हुई। नए आर्थिक परिदृश्य में सिर्फ उपभोग पर जोर दिया जाने लगा, जबकि भारतीय संस्कृति का शाश्वत विचार त्याग और आपसी सहचर्य की भावना पर जोर देता है।