लखनऊ !अरुण कुमार सिंह - चार दशकों में पहली बार उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में अपराधी पीछे हट रहे हैं. योगी आदित्यनाथ की सरकार, इस श्रेय की हकदार है. यह मुख्य रूप से योगी सरकार के कारण है कि अपराधी वापस जेल चले गए हैं. यदि वे पहले राजनीति में सक्रिय थे, तो यह इसलिए था क्योंकि तत्कालीन सरकारें उन्हें प्रोत्साहित कर रही थीं."![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEibp-zrM5VXtckvDegx6Uw2RrMuJeojrduqY49nXEZk3MvQhVyVBU_NNjWbV9pqmPLIykS90jgfjKAt3QE3QxA4ho81I6p7K5xe-jcq65HWvDTzHvmb1zkBLmsArXUZ0VDefMdPrrt-BZ8/)
चुनाव जीत कर आने वाले अपराधियों से स्वयं चुनाव आयोग परेशान हो गया था. इस पर कई बार मंथन हुआ था कि अपराधियों को चुनाव लड़ने से कैसे रोका जाय. चुनाव आयोग ने एक समय में यह व्यवस्था देने की कोशिश की थी कि जो जेल में हैं उन्हें चुनाव लड़ने से रोका जाय मगर तर्क यह दिया गया कि राजनीतिक प्रतिद्वंदिता में किसी को फर्जी ढंग से जेल भिजवा कर उसे चुनाव लड़ने से रोका जाने लगेगा. प्रत्याशी अपराधी प्रवृति का है, यह जनता को मालूम रहे. इसके लिए चुनाव आयोग ने आवश्यक कर दिया कि प्रत्याशी शपथ पत्र पर अपने सभी मुकदमों का विवरण सार्वजनिक करेगा. मगर इन सब जतन के बाद भी राजनीति में माफियाओं का दखल कम नहीं हो पा रहा था.
लोक सभा चुनाव से दूर हुए बाहुबली
बाहुबली हरि शंकर तिवारी ने चुनावी राजनीति छोड़ दी. अब उनके दोनों बेटे भीष्म शंकर तिवारी और विनय तिवारी चुनावी राजनीति में सक्रिय हैं. पिछली बार विधानसभा का चुनाव लड़ कर विधायक निर्वाचित हुए मुख्तार अंसारी भी इस लोकसभा चुनाव से दूर हैं. सपा की सरकार में वर्ष 2005 में मऊ जनपद में दंगा हुआ था. उस समय की जनता ने नारा लगाया था – “जिस गाड़ी में सपा का झंडा /उस पर बैठा मुख्तार का गुंडा.” जब मामला काफी आगे बढ़ गया तब मुख्तार अंसारी के खिलाफ मऊ जनपद में मुकदमा दर्ज किया गया. मुकदमा दर्ज होने के बाद मुख्तार अंसारी गाजीपुर जनपद की जेल में रहना चाहता था. इसके लिए वह गाजीपुर जनपद न्यायालय के कुछ मुकदमों में गैर हाजिर हो गया. गैर हाजिर होने पर कोर्ट से वारंट जारी हुआ. वारंट के अनुपालन में मुख़्तार अंसारी ,गाजीपुर जनपद न्यायालय में पेश हुआ और वहीं से वह गाजीपुर जेल चला गया. मुख्तार अंसारी पर आरोप है कि जेल में रहते हुए उसने भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या कराने का षड्यंत्र रचा. मुख्तार अंसारी 14 वर्षों से जेल में हैं. इस बार गाजीपुर लोकसभा सीट से मुख्तार अंसारी के भाई , अफजाल अंसारी लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं. अफजाल अंसारी बसपा के प्रत्याशी हैं. वाराणसी जेल में बंद माफिया डॉन बृजेश सिंह भी लोकसभा चुनाव में दूरी बनाये हुए हैं. भाजपा के सत्ता में आने के बाद से वह 'लो प्रोफाइल' में ही रहे हैं.
कांग्रेस ने किया राजनीति का अपराधीकरण तो मुलायम ने किया अपराध का राजनीतिकरण
पुरानी कहावत है कि - पानी और बेईमानी हमेशा ऊपर से नीचे की तरफ आते हैं. कांग्रेस के नेताओं ने राजनीति में अपराधियों के इस्तेमाल की परम्परा शुरू की. कांग्रेसी नेता इन अपराधियों से चुनाव में बूथ कैप्चर आदि कामों में उनकी मदद लिया करते थे. जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव का उदय हुआ तब उन्होंने अपराध का राजनीतिकरण करना शुरू किया और धीरे – धीरे पूरा प्रदेश इसकी चपेट में आ गया. यही वह दौर था जब प्रदेश के खराब दिन शुरू हो गए. गुंडों ने समाजवादी झंडा लगाकर जनता का जीना मुहाल कर दिया. जब – जब सपा की सरकार बनी प्रदेश में वर्दी का इकबाल खतरे में पड़ा. सपा शासनकाल में पुलिस वालों को दौड़ा – दौड़ा कर पिटा गया. यह सब कुछ इसलिए हुआ क्योंकि समाजवादी पार्टी ने अपराधियों को चुनाव लड़ा कर जन प्रतिनिधि बनाया. सत्ता हासिल हो जाने के बाद इन आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं ने शासन के बड़े अफसरों पर दबाव बनाया कि पुलिस थाने के अन्दर रहे शेष कार्य 'हम लोग' काम स्वयं कर लेंगे.यही होने भी लगा. पुलिस कमजोर हुई और जनता बेहाल होने लगी. अपराधी से नेता बनने वालों की जैसे बाढ़ - सी आ गई.
नोटबंदी थी इन माफियाओं की कमाई पर पहला प्रहार
इन अपराधियों ने पुलिस और शासन तंत्र को कमजोर करके विवादित सम्पातियों को कब्जा कर लिया. प्रदेश के जितने भी माफिया हैं उनमे से अधिकतर ने विवादित जमीन के कारोबार से पैसा कमाया है. इन माफियाओं पर सबसे पहली मार पड़ी नोटबंदी की. जमीन का अधिकतर कारोबार नगद पैसे के माध्यम से किया जा रहा था. नोटबंदी के बाद यह सब फंस गए. निवेशकों द्वारा बेतहाशा जमीनों की खरीद – बेंच की गति संतुलित हो गयी जिसके चलते इन माफियाओं की कमाई पर जबरदस्त झटका लगा. कुछ दिन पहले देवरिया जेल में पूर्व सांसद एवं माफिया अतीक अहमद ने अपने एक कारोबारी पार्टनर को बुलावाया था. आरोप है कि जेल में उस कारोबारी को मारा पीटा गया. उस कारोबारी और अतीक अहमद का आडियो भी वायरल हुआ जिसमे अतीक अहमद उससे अपना पैसा मांग रहे हैं. जानकारों के मुताबिक़ यह वो रकम है जो नोटबंदी के दौरान उस व्यवसायी को दी गई थी. उसी फंसी हुई रकम को लेकर विवाद हुआ था.
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लगातार पुलिस मुठभेड़ों के चलते जेल से बाहर नहीं आना चाहते अपराधी
वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद पुलिस के टूट चुके मनोबल को बढ़ाया गया. योगी की सरकार में एक हजार से ज्यादा पुलिस मुठभेड़ हुईं जिसमे 40 से ज्यादा कुख्यात अपराधी मारे गए . अभी तक के कुछ ख़ास मुठभेड़ों पर गौर करें तो लखनऊ के थाना चिनहट क्षेत्र का निवासी सुनील शर्मा पुलिस के साथ मुठभेड़ में मारा गया. सुनील शर्मा कुछ समय पहले कोर्ट में पेशी पर आया था उसी दौरान पुलिस को चकमा देकर फरार हो गया था. सीरियल किलर के नाम से मशहूर अपराधी सलीम - शोहराब के लिए सुनील शर्मा काम करता था. आजमगढ़ में थाना तरवा क्षेत्र का निवासी जयहिंद यादव जिसके ऊपर डेढ़ दर्जन से ज्यादा जघन्य किस्म के मुकदमे आजमगढ़ और मऊ जनपद में दर्ज थे और 15 हजार का इनामी था. पुलिस , मुठभेड़ में यादव मारा गया. मथुरा में पुलिस मुठभेड़ में कासिम मारा गया. कासिम मथुरा जनपद के शेरगढ़ थाना क्षेत्र का रहने वाला था . जिस समय मुठभेड़ हुई उस समय कासिम के घर पर साढ़े तीन लाख का इनामी साहून छिपा था. मुठभेड़ में साहून मौके से भाग गया मगर कासिम मारा गया. चित्रकूट के जंगल में डाकू बबली कोल के गैंग से पुलिस की मुठभेड़ हुई जिसमे एक इन्स्पेक्टर शहीद हो गए और एक सब इन्स्पेक्टर घायल हुए. पुलिस मुठभेड़ में डाकू शारदा कोल मारा गया . शारदा कोल 12 हजार का इनामी था. बुलंदशहर जनपद के अगौता थाना क्षेत्र का रहने वाला 50 हजार का इनामी नितिन मुजफ्फरनगर जनपद में पुलिस मुठभेड़ में मारा गया. पुलिस मुठभेड़ में जब नितिन मारा गया तो मुजफ्फर नगर के तत्कालीन एस. एस. पी. अनंत देव को वहां की जनता ने कंधे पर बिठा लिया था. शामली जनपद के कैराना थाना क्षेत्र का निवासी फुरकान 50 हजार का इनामी था. वह भी पुलिस मुठभेड़ में मारा गया. मुज्जफ्फर नगर के थाना छपार क्षेत्र का निवासी एवं शमीम 50 हजार का इनामी पुलिस मुठभेड़ में मारा गया. शमीम के खिलाफ दिल्ली और उत्तराखंड में भी अपराध दर्ज थे.
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बाहुबली विधायक और पूर्व मंत्री रघुराज प्रताप सिंह ने ' जनसत्ता दल' नाम से अपनी पार्टी बनाई है और लोकसभा चुनाव में दो उम्मीदवार उतारे हैं.
कई दशकों के बाद इस लोकसभा चुनाव में पहली बार है जब उतर प्रदेश में माफिया चुनाव मैदान से बाहर हैं. नोटबंदी और फिर उत्तर प्रदेश की बेहतर कानून - व्यवस्था के परिणामस्वरूप यह सब कुछ संभव हो पाया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते हैं “चुनाव आयोग को हमारी सरकार का शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि इस बार कोई माफिया चुनाव नहीं लड़ रहा है.”