यह वह कालखण्ड है जब बिहारी होना खुद में एक बहुत बड़ी गाली से कम नही था

10 मार्च 1990 को बिहार की गद्दी पर लालू प्रसादजी यादव का शपथ ग्रहण हुआ। वे बिहार के मुख्यमंत्री नियुक्त हुए। उनका यह टर्म 28 मार्च 1995 तक चला। आज विकास की बहुत बात हो रही है, इसलिए लगा कि लगे हाथों लालूजी ने बिहार जो दिया अपने शासन काल में उसकी थोड़ी चर्चा कर ली जाए। इस पूरे शासन काल में बिहार का विकास दर शून्य था। बिहार में 80 फीसदी लोग उस दौरान खेती पर निर्भर थे। खेती का बिहार की जीडीपी में 40 फीसदी का योगदान था। खेती में विकास एक फीसदी से भी कम था। वर्ष 2000—2005 के बीच बिहार की मुख्यमंत्री राबड़ी देवी थीं। इस दौर में बिहार ने अपना सबसे खराब समय देखा। इस दौरान सबसे अधिक कर्ज बिहार के ऊपर था। राजकोषिय घाटा और व्यय के असंतुलन ने बिहार को उस दौरान कहीं का नहीं छोड़ा। लालूजी और राबड़ीजी के शासन में गुंडागर्दी चरम थी और कारोबार चौपट होता गया।
मतलब देश में एक तरफ विकास के लिए गुजरात मॉडल प्रसिद्ध था और दूसरी तरफ बर्बादी का लालू मॉडल था। बिहार की तरक्की ना हो फिर यह कैसे संभव था कि ​राज्य में यादव, कुर्मी, पासी, माझी या अन्य पिछड़ी जाति का समाज तरक्की कर जाता? सभी जाति और वर्ग के लोगों ने जमकर बिहार से पलायन किया। यह 90 से 2005 का कालखंड का था, जिसमें बिहारी होना गाली बन गया। बिहारी होने को गाली बनाने राबड़ीजी और लालूजी का अमूल्य योगदान है। जिसे बिहारीजन नहीं भूला सकते।