विश्व में केवल छह देशों में महिलाओं को है पूर्ण अधिकार, भारतीय उपमहाद्वीप में पाक सबसे पीछे

नई दिल्ली[चौथा कोना विशेष ]। नारी सशक्तिकरण और महिलाओं को समानता का अधिकार, एक ऐसा विषय है जिसे लेकर भारत समेत दुनिया भर में लंबे समय से बहस छिड़ी हुई है। आधी आबादी को पूरा अधिकार देने के लिए अंतरराष्ट्रीय मंचों से लेकर कस्बाई स्तर तक कवायद की जा रही है। बावजूद आज भी ये सवाल खड़ा है कि क्या महिलाओं को पुरुषों की तरह आजादी मिल चुकी है। ऐसे में लैंगिग समानता पर विश्व बैंक द्वारा दुनिया भर में महिलाओं की स्थिति पर चौंकाने वाली रिपोर्ट जारी की है।



विश्व बैंक की रिपोर्ट ‘वूमेन, बिजनेस एंड द लॉ 2019’ (Women, Business and the Law 2019) के अनुसार दुनिया लैंगिग समानता की ओर बढ़ तो रही है, लेकिन इसकी रफ्तार बहुत धीमी है। इस रफ्तार से अगले 50 साल (वर्ष 2073) तक भी महिलाओं को पुरुषों के बराबर का कानूनी दर्जा प्राप्त नहीं हो सकेगा। वर्तमान में पूरी दुनिया में केवल छह ऐसे देश हैं, जहां सही मायनों में महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार प्राप्त है। इन देशों में बेल्जियम, डेनमार्क, फ्रांस, लातविया, लक्समबर्ग और स्वीडन देश शामिल हैं।


 


रिपोर्ट में इन देशों को महिलाओं को पुरुषों के बराबर कानूनी अधिकारी देने के लिए पूरे 100 नंबर दिए गए हैं। इन छह शीर्ष देशों में फ्रांस ने पिछले एक दशक में सबसे ज्यादा सुधार किया है। फ्रांस ने घरेलू हिंसा कानून (Domestic Violence Law), कार्यस्थल पर महिला यौन उत्पीड़न गंभीर अपराध और अभिभावकों को वैतनिक अवकाश जैसे फैसलों का अहम योगदान है। इसी तरह 100 नंबर के साथ पहले पायदान पर मौजूद देशों ने भी महिलाओं को पुरुषों को बराबर अधिकारी दिलाने के लिए कई बड़े और अहम कानून बनाए हचुनौतियों के बावजूद नहीं मिलते सामान अवसर


लैंगिग समानता को लेकर किए गए अध्ययन में पूरी दुनिया औसत अंक 74.71 है। मतलब विश्वभर में महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले मात्र 75 फीसद अधिकार ही प्राप्त हैं। इसके विपरीत मिडिल ईस्ट और अफ्रीका के सब सहारा देशों को विश्व बैंक के अध्ययन में औसत 47.37 अंक ही हासिल हुए हैं। मतलब इस क्षेत्र में महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले आधे से भी कम अधिकारी प्राप्त हैं। इस अध्ययन का उद्देश्य ये बताना है कि कैसे कानून अड़चनें महिला रोजगार और महिला उद्यमिता की राह में रोड़ा बनी हुई हैं। इस वजह से उन्हें अपने करियर में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। बावजूद उन्हें सामान अवसर नहीं मिल पाते हैं।

 


इन मानदंडों पर किया गया अध्ययन
महिलाओं की स्थिति जानने के लिए जिन मानदंडों पर विश्लेषण किया गया उसमें, उनके जाने के स्थान, नौकरी शुरू करना, भुगतान मिलना, शादी करना, बच्चे पैदा करना, व्यवसाय चलाना, संपत्ति प्रबंधन और पेंशन प्राप्त करना शामिल है। अध्ययन के दौरान ज्यादातर महिलाओं ने कुछ सवालों पर चुप्पी साध ली, जैसे- क्या उन्हें पुरुषों की तरह घर से बाहर आने-जाने अथवा यात्रा करने की आजादी है? और क्या उनके यहां का कानून वास्तव में घरेलू हिंसा से उनकी रक्षा करता है?


विकसित देशों में भी स्थिति सही नहीं
जब बात महिला अधिकारों की होती है तो जहन में विकसित देशों की छवि उभरती है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि विकसित देशों में महिलाओं को पुरुषों के बराबर कानूनी अधिकार मिले हुए हैं, जो सच नहीं है। अमेरिका को इस रिपोर्ट में 83.75 अंक, हासिल हुए हैं। वहीं यूनाइटेड किंगडम को 97.5 फीसद, जर्मनी को 91.88 और ऑस्ट्रेलिया को 96.88 अंक प्राप्त हुए हैं। अमेरिका लैंगिग समानता वाले टॉप 50 देशों में भी शामिल नहीं है।


 


महिला अधिकारों में कानून ही बन रहे बाधक
आपको जानकर हैरानी होगी कि महिलाओं को नौकरी और तरक्की के सामान अवसर प्रदान करने में संबंधित देशों के कानून ही बाधक बन रहे हैं। बच्चों वाली महिलाओं के वर्ग में अमेरिका को मात्र 20 अंक प्राप्त हुए हैं। इसमें मातृत्व, पितृत्व और माता-पिता की छुट्टियों संबंधी कानून का अध्ययन किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नीति बनाने वाले, बच्चों वाली महिलाओं को काम से हटाने में दिलचस्पी रखते हैं। दरअसल उन्हें लगता है कि बच्चे पैदा होने के बाद महिलाएं पहले की तरह पूरी क्षमता से काम नहीं कर पाती हैं।


मिडिल ईस्ट में सबसे खराब स्थिति
अध्ययन में बताया गया है कि महिला अधिकारों की सबसे खराब स्थिति मिडिल ईस्ट में है। रिपोर्ट में सऊदी अरब को सबसे कम 25.63 अंक प्राप्त हुए हैं और वह अंतिम पायदान पर है। इसके अलावा सुडान, यूएई (संयुक्त अरब अमीरात), सीरिया, कतर और ईरान को भी अध्ययन में 35 से कम अंक प्राप्त हुए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले एक दशक में दक्षिण एशिया, पूर्वी एशिया और सब-सहारा अफ्रीका में महिला अधिकारों को लेकर सबसे ज्यादा जागरूकता और सुधार देखने को मिला है। पिछले एक दशक में महिलाओं को बराबर का दर्जा देने की दिशा में सबसे ज्यादा सुधार कांगो देश में हुआ है। एक दशक पहले इस अध्ययन में कांगों को मात्र 42.50 अंक प्राप्त हुए थे, जो मौजूदा अध्ययन में बढ़कर 70 अंक हो गए हैं।


 


भारतीय उपमाद्वीप में पाकिस्तान फिसड्डी
विश्व बैंक द्वारा लैंगिग समानता का ये अध्ययन भारत समेत 187 देशों में किया गया है। इनमें से कई देश समान अंक पाने की वजह से एक ही पायदान पर हैं। इस तरह से अध्ययन में 75 पायदान सबसे नीचे है। बात अगर भारतीय उपमहाद्वीप की करें तो यहां पाकिस्तान की स्थिति सबसे खराब है। मात्र 46.25 अंक के साथ भारत 63वें पायदान पर है। भारतीय उपमहाद्वीप में 73.75 अंकों के साथ मालदीव सबसे ऊपर (वैश्विक स्तर पर 33वें पायदान परष और भारत 71.25 अंक के साथ दूसरे नंबर पर (वैश्विक स्तर पर 37वें पायदान पर) काबिज है। पाकिस्तान, सबसे खराब रहे मिडिल ईस्ट और अफ्रीका के सब-सहारा रीजन के औसत से भी पीछे है।