जार्ज फर्नांडिस ऐसे नेता जिन्हें कभी नहीं झुका सकी कांग्रेस

जार्ज फर्नांडिस ऐसे नेता थे जो आपातकाल लगाकर देश की जनता को प्रताड़ित करने वाली इंदिरा गांधी को माफ करने के लिए कभी तैयार नहीं हुए। शून्य से पचास डिग्री सेल्सियस से नीचे के तापमान में सैनिकों से मेल-मुलाकात करने वाले वह देश के पहले रक्षा मंत्री थे


देश में आज राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन की सरकार है। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन की दूसरी सरकार। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन की पहली सरकार अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी थी।

 

   देश को दो बार सरकार दे चुके और अब अगले कई वर्षों के लिए सबसे बड़े राजनीतिक यथार्थ इस राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन के मर्म को अगर टोटला जाए, तो उनकी नींव में मौजूद लोगों में एक सबसे बड़ा नाम है- जॉर्ज फर्नांडिस।

6 दिसम्बर 1992 के बाद से राजनीति में दो प्रकार की खींचतान चल पड़ी थी। एक जातियों के आधार पर राजनीति करने की, जिसे वी.पी. सिंह के मंडल प्रयोग का परिणाम माना जा सकता है और दूसरी भारतीय जनता पार्टी से राजनैतिक छुआछूत की, जिसकी शुरुआत कम्युनिस्टों ने बहुत ही शरारत भरी चालें चल कर की थी। भारतीय जनता पार्टी से राजनैतिक छुआछूत रखना राजनीतिक सवाब का फर्ज माना जाता था और सेक्युलर होने की यह प्राथमिक शर्त बन गई थी।

 

    1992 के बाद लगभग दो-तीन वर्ष तक भारतीय जनता पार्टी राजनीतिक तौर पर अछूत बनी रही। इसके बाद भारतीय जनता पार्टी और साथ ही साथ एनडीए के अभ्युदय की पटकथा के सबसे अहम सह-लेखक थे- जॉर्ज फर्नांडिस। कैसे?

पी.वी. नरसिंह राव सरकार की आर्थिक नीतियां- जिन्हें उदारीकरण- कहा गया था, और जिसका सीधा नतीजा भ्रष्टाचार में निकलता रहा था, देश की जनता के एक बड़े वर्ग को जरा भी रास नहीं आ रही थीं। एस. गुरुमूर्ति के नेतृत्व में स्वदेशी जागरण मंच इन नीतियों का मुखर विरोध कर रहा था। स्वदेशी जागरण मंच की दृष्टि के दो पहलू थे। एक वह देश के भीतर उदार व्यवस्था बनाने का हामी था, लेकिन देश के उदार हालातों का फायदा विदेशियों को मिले, इसका वह विरोध करता था।

 

     समाजवादी – असली वाले- दोनों तरह के उदारीकरण के विरुद्ध थे। लेकिन उनके पास कमरा बैठक करने से ज्यादा की शक्ति नहीं थी। उधर कमोबेश यही स्थिति स्वदेशी जागरण मंच की थी।

अकेला चना भाड़ भी नहीं फोड़ सकता, तो एक साथ कांग्रेस और विश्व बैंक की घेरेबंदी कैसे फोड़ेगा? ऐसे में गुरुमूर्ति ने बहुत तेज पैंतरा बदला। उन्होंने संवाददाता सम्मेलन बुलाया और कहा कि स्वदेशी जागरण मंच इन नई आर्थिक नीतियों का “पूरी तरह” विरोध करता है।

“पूरी तरह” विरोध, माने आंतरिक उदारीकरण का भी विरोध।

कोई घूस नहीं, कोई सत्ता नहीं, कोई प्रलोभन नहीं, लेकिन नीतिगत राय का मेल खाना जॉर्ज फर्नांडिस के लिए स्वदेशी जागरण मंच के साथ आने के लिए काफी था। कोक को बाहर करने वाले जॉर्ज फर्नांडिस स्वदेशी जागरण मंच के साथ आए। होते-होते संघ और भाजपा के साथ उनका संवाद शुरु हुआ। धीरे-धीरे एनडीए बना, जॉर्ज फर्नांडिस उसके संयोजक बने और इतिहास ने करवट बदना शुरु कर दिया। उसके बाद जो हुआ वह आज के दौर के लिए ताजा इतिहास है। बहरहाल एक ओर देश के सामने स्वयं को सरकार देने के एक विश्वसनीय मंच इससे सामने आया और दूसरे जातियों की राजनीति विचार के बजाए परिवारों की ओर बढ़ कर समाप्त होने के लिए मजबूर हो गई।

     

     जॉर्ज फर्नांडिस के साथ यही दिक्कत थी। वह आम जनता के हिसाब से, आम लोगों के हितों के हिसाब से अपनी नीति पर डटे रहते थे। राजनीति उनके लिए कभी भी अहंमन्यता का विषय नहीं था। लकीर के फकीर होने का तो सवाल ही नहीं। जॉर्ज फर्नांडिस गांव-गंवई की पृष्ठभूमि वाले नेता नहीं थे। वह ट्रेड यूनियनों के, माने विशुद्ध शहरी लोक के नेता थे, लेकिन गांवों का और देश का हित वह किसी स्वयंभू ग्रामीण नेताओं से बेहतर समझते थे। लेकिन किसी जाति के लिए नहीं, अपनी सीट की राजनीति के लिए भी नहीं। सिर्फ जनहित की खातिर।

 

   जॉर्ज फर्नांडिस के साथ दूसरी बड़ी दिक्कत यह थी कि राजनीति उनके किसी निजी स्वार्थ की पूर्ति नहीं करती थी। लिहाजा “स्वार्थ के लिए राजनीति और राजनीति के लिए स्वार्थ” करने वाले कुनबे के लिए जॉर्ज फर्नांडिस दुश्मन नंबर एक थे।

 

     जॉर्ज फर्नांडिस को इमरजेंसी के योद्धा के रूप में पूरा देश जानता है। लेकिन जॉर्ज फर्नांडिस के योद्धा रूप को बहुत लोग नहीं जानते। देश के करोड़ों अन्य लोगों की तरह जॉर्ज फर्नांडिस भी इमरजेंसी लगाकर देश की जनता को प्रताड़ित करने वाली इंदिरा गांधी को माफ करने के लिए कभी तैयार नहीं हुए। इसी कारण कांग्रेस का पूरा पारिस्थिकीय तंत्र जॉर्ज फर्नांडिस को किसी खलनायक की तरह समझने लगा। और किसी खलनायक के प्रति घृणा अपने चरम पर तब होती है, जब वह उनके फलते-फूलते कारोबार तक जा पहुंचता है।

 

पारिस्थिकीय तंत्र के साथ ऐसा तब हुआ, जब जॉर्ज फर्नांडिस वाजपेयी सरकार में रक्षा मंत्री बने। सियाचिन में तैनात जवानों की हालत को, वहां की परिस्थितियों को जॉर्ज फर्नांडिस स्वयं परखते थे और सियाचिन जाकर शून्य से पचास डिग्री सेल्सियस से नीचे के तापमान में सैनिकों से मेल-मुलाकात करने वाले वह देश के पहले रक्षा मंत्री थे। जॉर्ज फर्नांडिस ने सियाचिन में तैनात जवानों के लिए बर्फ में चलने वाले स्कूटर खरीदने का प्रयास किया। पता चला कि उन्हीं के मंत्रालय के दो अधिकारी इसमें अवरोध डाल रहे हैं। जॉर्ज फर्नांडिस ने उन दोनों अधिकारियों को दंडित नहीं किया, बल्कि तुरंत उन्हें स्वयं सियाचिन जाकर थोड़ा समय बिताने का आदेश जारी कर दिया।

 

      पारिस्थिकीय तंत्र से जॉर्ज फर्नांडिस की यह पहली टक्कर नहीं थी। स्थिति यह थी कि पारिस्थिकीय तंत्र जॉर्ज फर्नांडिस को “अनथक विद्रोही या (रिबेल विद्आउट ए पॉज)” पुकारता रहा।

पारिस्थिकीय तंत्र ने भी जॉर्ज फर्नांडिस को कभी नहीं बख्शा। जब जॉर्ज फर्नांडिस पहले ऐसे रक्षामंत्री हुए, जिनका संसद में विपक्ष ने बहिष्कार किया था। किसी भी परिपक्व और बेदाग नेता के लिए यह बहुत अपमानजनक होता है। लेकिन जॉर्ज फर्नांडिस इससे अप्रभावित बने रहे। पारिस्थिकीय तंत्र ने जॉर्ज फर्नांडिस पर दूसरा हमला बोला ‘तहलका’ पत्रिका के एक कथित स्टिंग ऑपरेशन के जरिए। किसी न किसी तरह जॉर्ज फर्नांडिस को कलंकित करने और रक्षा सौदों में दलाली लेने का आरोप तैयार किया गया। इसके लिए ‘वेस्ट एंड इंटरनेशनल’ नाम की फर्जी हथियार कंपनी लंदन के पते से प्लांट की गई। फिर एक स्टिंग ऑपरेशन करके जॉर्ज फर्नांडिस को आरोपों के दायरे में लाने की कोशिश की गई। इस मामले की जांच के लिए जस्टिस एस.एन. फुंकन आयोग बना. इस आयोग ने तहलका के आरोपों से जॉर्ज को क्लीनचिट दी। पारिस्थिकीय तंत्र ने जस्टिस एस.एन. फुंकन आयोग की रिपोर्ट को खारिज कर दिया और यूपीए की सरकार ने जस्टिस के. वेंकटस्वामी के नेतृत्व में इसी मामले की जांच के लिए एक और आयोग बनाया। यह आयोग अपनी रिपोर्ट ही पेश नहीं कर सका।

पारिस्थिकीय तंत्र ने जार्ज को फिर भी नहीं बख्शा। जॉर्ज फर्नांडिस जब रक्षा मंत्री थे, तब देश ने न केवल परमाणु परीक्षण किया, बल्कि कारगिल का युद्ध भी लड़ा और जीता था। जॉर्ज फर्नांडिस पर आरोप लगाया गया कि कारगिल युद्ध के शहीद सैनिकों के शवों को ले जाने के लिए, वास्तविक कीमत से 13 गुना अधिक दरों पर 500 खराब गुणवत्ता वाले एल्यूमीनियम कास्केट अमेरिका से खरीदे गए थे। इसे सुविधापूर्ण ढंग से “ताबूत घोटाला” कहा गया। 2004 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने इसे 24 हज़ार करोड़ रुपए का घोटाला बताया था। लेकिन यूपीए की नाक के नीचे 2009 में पेश की गई अपनी चार्जशीट में सीबीआई फर्नांडीस पर कोई आरोप नहीं लगा सकी, और 2013 में ट्रायल कोर्ट ने सभी को बरी कर दिया। यूपीए हुकूमत इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गई और 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने फिर किसी तरह का घोटाला होने की बात से ही इनकार कर दिया।

जॉर्ज फर्नांडिस अब इस दुनिया में नहीं हैं। उनके शरीर के साथ ही उस समाजवाद ने भी दम तोड़ दिया है, जो प्रेरित भले ही कहीं से भी हुआ हो, जिसके प्राण भारत में ही बसते थे। लेकिन अपने जीते जी जॉर्ज फर्नांडिस इस पारिस्थिकीय तंत्र के जबड़ों पर घावों के इतने निशान छोड़ गए हैं कि उसे अपनी अपराजेय की गलतफहमी कभी नहीं हो सकेगी।