नक्सलियों से कांग्रेस का चोली -दामन का साथ !
     सोमवार को केन्द्रीय मंत्री अरुण जेटली का एक ट्वीट काफी चर्चा में रहा. अमेरिका से स्वास्थ्य लाभ लेकर वापस आए जेटली ने लिखा- ‘छत्तीसगढ़ चुनाव में कांग्रेस ने माओवादियों के साथ गठबंधन किया.’ जेटली एक जिम्मेदार नेता और प्रख्यात वकील भी हैं. ज़ाहिर है ऐसा आरोप उन्होंने कोई पुख्ता इनपुट के आधार पर ही लगाया होगा.ऐसे में जेटली का पोस्ट वास्तव में कांग्रेस-नक्सल गठजोड़ के एक और साक्ष्य के तौर पर ही देखा जाना चाहिए. इस ट्वीट का जवाब देते हुए छग के सीएम भूपेश बघेल ने ट्वीट किया कि उनका गठजोड़ किसानों-आदिवासियों आदि से है. ट्वीट में व्यक्त भाषा यहां दुहराने का खैर कोई मतलब नहीं है, लेकिन इतना तो कहना ही होगा कि नक्सलवाद का बहाना भी आदिवासी, किसान आदि ही होते हैं. तो छग के सिस्टम में घुसे कथित नक्सल रहनुमा लोगों पर संदेह होना लाजिमी ही है.

 

     जेटली के ट्वीट पर भरोसा करने के अनेक कारणों में सबसे बड़ा कारण नक्सली-आतंकी इतिहास है जिसके आधार पर आप निष्कर्ष निकाल सकते हैं. कुछ तथ्यों पर गौर कीजिये. आप पाएंगे कि नक्सलवाद को जन्म देने और उसके बाद उसे पालने पोसने में कांग्रेस की भूमिका हमेशा रही है। पश्चिम बंगाल के जिस नक्सलवाड़ी से इसकी शुरुआत हुई, वहां उस समय कांग्रेस की ही सत्ता थी. जिस अविभाजित मध्य प्रदेश के बस्तर-सरगुजा आदि में नक्सलियों ने पांव फैलाए, वहां भी कांग्रेस ही सत्तासीन थी. जिस छत्तीसगढ़ में बाद में उसे आश्रय मिला तब नए छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस के अजीत जोगी की सरकार थी, यहां तक की आश्रय की तलाश में जब वे कोंडापल्ली सीतारमैया के नेतृत्व में बस्तर में घुसे तब भी आंध्र में भी कांग्रेस की ही सरकार तो थी. और तो और... बस्तर में विकास नहीं होने, आदिवासियों के शोषण और उनके पिछड़ेपन को बहाना बनाकर जब नक्सली छत्तीसगढ़ में आये, तो उन्हें पिछड़ेपन का ‘बहाना’ भी तो कांग्रेस ने ही उपलब्ध कराया न? कौन नहीं जानता कि केंद्र में विभिन्न कांगेसी सरकारों, मध्य प्रदेश की भी इसी दल की सरकारों ने हमेशा उपनिवेश जैसा बना कर रखा था तब के इस आदिवासी अंचल को, छग के संसाधनों को लूट कर भोपाल और दिल्ली में कांग्रेसियों के बंगले सजते रहे और बस्तर और ज्यादा वंचित होता गया.

 

  यही परिस्थितयां थीं जिसके कारण भाजपा ने अलग प्रदेश बना कर इसे कांग्रेसी चंगुल से मुक्त करने की कोशिश की, बाद में अवसर मिलने पर न केवल पंद्रह वर्ष तक समूचे बस्तर का उल्लेखनीय विकास किया बल्कि सरगुजा संभाग से नक्सलियों का समूल विनष्ट भी संभव हुआ. आप आज बस्तर चले जायें, तो अनेक मामलों में वह आदिवासी अंचल आपको बड़े-बड़े नगरों से ज्यादा विकसित और मज़बूत नज़र आयेगा. यहां ख़ास तौर पर यह उल्लेखनीय है कि आज इस कथित गठजोड़ के कारण चुनाव जीत कर आये सीएम न केवल अजीत जोगी कार्यकाल की कारगुजारियों के तब जोगी कैबिनेट के मंत्री होने के कारण बराबर के जिम्मेदार थे बल्कि मध्य प्रदेश के ज़माने में भी इन नेताओं की भूमिका वही रही जैसे फिरंगी सल्तनत में जमींदारों-एजेंटों की भूमिका होती थी.

कुछ और उदाहरण देखें. कांग्रेस आज नक्सलवाद से अपने संबंध का विरोध करते हुए अक्सर झीरम हमले का उदाहरण देती है. यह सच है कि उस दर्दनाक और क्रूर हमले में कांग्रेस के दर्ज़न भर नेता समेत काफी लोग मारे गए थे . हालांकि उसी हमले में अनेक कांग्रेस नेताओं की भूमिका भी संदिग्ध पायी गई थी जिनमें से एक तो अभी प्रदेश के कैबिनेट में मंत्री हैं, तो कुछ और ने हाल में ही में कांग्रेस छोड़ा है. आपको जान कर आश्चर्य होगा कि कुछ माह पहले इस घटना के बारे में पूछने पर बिलासपुर में संपादकों के साथ बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने साफ़ तौर पर कहा था कि – ‘वे दावे से कह सकते हैं कि नन्द कुमार पटेल को माओवादियों ने नहीं मारा. हमारे मौजूदा लीडरशिप को भी यह पता है.’ जिस नृशंस घटना की जांच के लिए राहुल गांधी की ही मनमोहन सरकार ने एनआईए जांच का आदेश दिया था, उस मामले में कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा बिना जांच पूरी हुए ही माओवादियों को क्लीन चिट देना क्या माओवादी गठजोड़ का उदाहरण नहीं माना जाय?