कांग्रेस के नतमस्तक सेकुलर मीडिया
     राहुल गांधी आजकल राफेल पर लगभग हर दिन प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे हैं। वह हर बार वे एक ही बात दोहराते हैं। तथ्यों से ज्यादा गाली-गलौज पर जोर होता है। वे जो दावे करते हैं उनमें से ज्यादातर की पोल पहले ही सर्वोच्च न्यायालय में खुल चुकी है। बाकी का सच सोशल मीडिया पर सामने आ ही जाता है। लेकिन इन चैनलों का उत्साह देखकर हैरानी होती है जो हर दिन राहुल की प्रेस कॉन्फ्रेंस को बड़ी उम्मीदों से दिखाते हैं।

     

      उन संवाददाताओं को देखकर तो और भी आश्चर्य होता है जो इन कथित प्रेस कॉन्फ्रेंस में जाते हैं, लेकिन राहुल से एक बार भी नहीं पूछ पाते कि आप ये अधूरे दस्तावेज और तथ्य दिखाकर हमारी आंखों में धूल क्यों झोंक रहे हैं? कारण यह कि मीडिया का एक जाना-पहचाना वर्ग इस खेल में कांग्रेस का साझीदार है। इनमें बड़े-बड़े समाचार समूह, कुछ तथाकथित बड़े संपादक और पत्रकारों की पूरी फौज शामिल है।

   
     दरअसल मुख्यधारा मीडिया का एक बड़ा वर्ग गांधी परिवार की चरण वंदना में व्यस्त है। प्रियंका का राजनीति में पदार्पण विपक्ष की दृष्टि से बड़ी खबर हो सकता है, लेकिन आजतक और एबीपी न्यूज के लिए तो मानो यह वफादारी दिखाने का मौका बन गया। जिस रोड शो में खाली सड़कें और उत्साहहीन कार्यकर्ता साफ-साफ देखे जा सकते थे, उसमें इन दोनों चैनलों के संवाददाताओं का उत्साह देखते बन रहा था। आजतक समूह के पास तो आधा दर्जन से अधिक संवाददाताओं की एक अलग टीम है जो सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस के लिए काम करती है। प्रियंका जब पहली बार कार्यकर्ताओं से मिल रही थीं तो इस चैनल ने पट्टी लगाई कि ‘प्रियंका ने तो परिश्रम की पराकाष्ठा कर दी’। तो न्यूज18 इंडिया चैनल ने यह जानकारी देकर चापलूसी में सबको पीछे छोड़ दिया कि जब प्रियंका को टुंडे कबाब परोसा गया तो उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि आज मंगलवार है।

       

      इसी समूह के अंग्रेजी चैनल सीएनएन न्यूज18 को तो प्रियंका में उनकी दादी इंदिरा के साथ-साथ राजकुमारी डायना की छवि दिखाई दी।



     द हिंदू’ अखबार ने अभी हाल में राफेल सौदे पर दो-दो फेक न्यूज छापी। दोनों रिपोर्ट की धज्जियां अखबार छपने के कुछ मिनटों के अंदर ही उड़ गईं। सवाल उठता है कि इस अखबार को कौन ‘सुपारी’ दे रहा है? अखबार के वामपंथी झुकाव वाले पूर्व संपादक एन. राम ने दावा किया कि जब वे बोफर्स घोटाले का खुलासा कर रहे थे तब किसी ने उनकी सच्चाई पर सवाल नहीं उठाया। इसकी भी कहानी फौरन सामने आ गई जब बोफर्स घोटाले का खुलासा करने वाली पत्रकार चित्रा सुब्रह्मण्यम ने यह बात सार्वजनिक कर दी कि उस घोटाले में कांग्रेस को नुकसान होता देख एन. राम ने उनकी भेजी खबरें छापनी बंद कर दी थीं और तब उन्हें स्टेट्समैन में खबरें छपवानी पड़ी थीं।

 

   

     उधर तमिलनाडु के कुंभकोणम में रामलिंगम नाम के एक सामाजिक कार्यकर्ता की निर्ममता से हत्या कर दी गई। एक वीडियो सामने आया, जिसमें वह दलित बस्ती में कन्वर्जन के लिए गए कुछ मौलवियों के आगे विरोध जता रहे थे। इससे पहली नजर में ही हत्या का कारण स्पष्ट हो गया। रामलिंगम खुद भी दलित समुदाय से थे। लेकिन इस बार मीडिया का रवैया बदला हुआ था। ज्यादातर ने तो यह खबर ही नहीं छापी। जिन्होंने छापा उन्होंने भी यह ध्यान रखा कि ऐसा लगे मानो यह कोई सामान्य आपराधिक घटना है। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक ‘किसी गिरोह ने एक कैंटीन ठेकेदार की हत्या कर दी’। पढ़कर लगे जैसे भोजन वगैरह के लिए झगड़ा हुआ होगा।

       यहां ध्यान देने वाली बात है कि जो मीडिया अखलाक, पहलू खान, जुनैद जैसे नाम उछालकर उन्हें लोगों के दिमागों में बिठा देता है उसके लिए एक हिंदू की पहचान ‘कैंटीन ठेकेदार’ से अधिक की नहीं थी। जैसे-जैसे 2019 के चुनाव करीब आ रहे हैं, कांग्रेसी मीडिया ने अपना पुराना खेल फिर से शुरू कर दिया है। टीवी पर होने वाली बहसों में भाजपा प्रवक्ता के सामने कांग्रेस, सपा, आप और राजनीतिक विश्लेषक के नाम पर एक और कांग्रेस समर्थक पत्रकार बिठा दिया जाता है और बहसों के पलड़े कांग्रेस की तरफ झुकाया जाता है। आजतक और एबीपी न्यूज इस चलन के सबसे बड़े विशेषज्ञ हैं।