हिंदू धर्म में फेरों के समय क्‍यों वर के बायीं और बैठती है वधू?

    हिंदू धर्म में विवाह का महत्‍वपूर्ण स्‍थान है, इस धर्म में विवाह की हर रस्‍म का अलग ही महत्‍व है। चाहे वो मंगलसूत्र और सिंदूर हो या सात फेरे। हिंदू धर्म में बिना फेरों के विवाह को विवाह नहीं माना जाता है, सात फेरों को यहां सात जन्‍म से जोड़कर देखा जाता है। अक्‍सर आपने देखा होगा कि विवाह की रस्‍में शुरु होने से पहले वधू, वर के दाह‍िनें और बैठती है लेकिन तीसरे या चौथे फेरो के पश्‍चात वधू, वर के बायीं और आकर बैठ जाती है। आपने कभी इस बात पर ध्‍यान दिया है कि फेरो के दौरान क्‍यों वधू हमेशा वर के बायीं और बैठती हैं? नहीं तो आइए आज हम आचार्य रुपाली सक्सेना से जानते है इसके पीछे छिपे कारण के बारे में।

हिंदू विवाह में सबसे पहले बात करते हैं हिंदु विवाह की यहां भी दुल्‍हन को दूल्‍हें के बायी ओर बिठाया जाता है और ये परंपरा आजीवन चलती है। हर धार्मिक अनुष्‍ठान में पत्‍नी पति के बायीं ओर ही बैठती है। वधु, वर के बायीं ओर बैठती है, इसीलिए पत्नी को ‘वामांगी' भी कहा जाता है।

ज्‍योतिष के अनुसार इसका एक कारण तो ज्‍योतिष शास्‍त्री ये बताते हैं कि पत्नी का स्थान पति के बायीं ओर ही होता है, क्‍योंकि शरीर और ज्योतिष, दोनों विज्ञान में पुरुष के दाएं और स्त्री के बाएं भाग को शुभ और पवित्र माना जाता है।

हस्‍तरेखा के अनुसार हस्तरेखा शास्त्र में भी महिलाओं का बायां और पुरुष का दायां हाथ ही देखा जाता है। शरीर विज्ञान के अनुसार मनुष्य के शरीर का बायां हिस्सा मस्तिष्क की रचनात्मकता और दायां हिस्सा उसके कर्म का प्रतीक है।

मानव स्‍वभाव के अनुसार सभी मानते हैं कि स्त्री का स्वभाव प्रेम और ममता से पूर्ण होता है और उसके भीतर रचनात्मकता होती है, इसीलिए स्त्री का बाईं ओर होना प्रेम और रचनात्मकता की निशानी है। वहीं पुरुष हमेशा दाईं ओर होता है क्‍योंकि ये इस बात का प्रमाण होता है कि वो शूरवीर और दृढ होगा। पूजापाठ या शुभ कर्म में वह दृढ़ता से उपस्थित रहेगा। जब भी कोई शुभ कार्य दृढ़ता और रचनात्मकता के मेल के साथ संपन्न किया जाता है तो उसमें सफलता मिलना निश्‍चित है।
धार्मिक कारण 
धार्मिक कारण हमारे हिंदू धर्म में विष्णु जी और लक्ष्‍मी जी का स्‍थान सर्वोपरि हैं। शास्‍त्रों में हमेशा लक्ष्‍मी का स्‍थान श्री विष्‍णु के बायीं और होने का उल्‍लेख मिलता हैं। यही कारण हैं कि हिंदूओं विवाह में फेरो के बाद लड़की का स्‍थान बायीं ओर होता हैं।



क्रिश्‍चियन विवाह में

क्रिश्‍चियन विवाह में ऐसा नहीं है कि स्‍त्री के वाम अंग पर रहने की परंपरा केवल हिंदू विवाह में होती है। क्रिश्‍चियन शादी में भी दुल्‍हन हमेशा पुरुष के बायीं ओर खड़ी होती है। इसके भी कई धर्मिक और सामजिक कारण है।


सुरक्षा के ल‍िए
सुरक्षा के ल‍िए क्रिश्‍चयन विवाह में भी पुरुष रक्षक और शक्‍ति का प्रतीक माना जाता है। ये परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। पुराने जमाने में जब युद्ध होते थे उस समय से पुरुषों पर स्‍त्री की रक्षा करने का दायित्‍व होता था। ऐसे में किसी हमले की संभावना होने पर पुरुष अपनी तलवार से शत्रु को रोक सके और पत्‍नी घायल भी ना हो तो उसका राइट हैंड फ्री रखने के लिए ब्राइड लेफ्ट में खड़ी होती थी।



मान्‍यताएं



मान्‍यताएं कैथलिक मान्‍यताओं के अनुसार स्‍त्री बाई ओर इसलिए होती है ताकि वो वर्जिन मेरी के करीब रहे और उसके कौमार्य की पवित्रता बनी रहे। सामाजिक कारण: वहीं ब्रिटेन और कई दूसरे देशो में यह प्रथा रही हैं कि में क्‍वीन सत्‍ता के शीर्ष पर रहती रही हैं तो क्‍वीन को हमेशा राइट में रहना होता है।



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